Selections of Kabir from Adi-Granth
About this text
Introductory notes
Kabir(1398-1448) is a North Indian devotional poet, who was born in Banaras and was active in the fifteenth century. His corpus of work has a complex textual history with innumerable manuscripts and variants of poems and aphorisms. According to Vinay Dharwadker, thereare three different schools of manuscript-traditions pertainingto Kabir's work, the Nanak Panth (northern), Dadu Panthi(western)and the Kabir Panth. His work survives in various languages-Braj Bhasha, Avadhi, Bhojpuri, Rajasthani, Khadi Boli, Punjabi besides showing traces of Sanskrit, Persian and Arabic elements.
Our selection here is from the electronic edition of the Adi Granth.
1.
[Page 656]
भूखे भगति न कीजै ॥ यह माला अपनी लीजै ॥ हउ मांगउ संतन रेना ॥ मै नाही किसी
का देना ॥ १ ॥ माधो कैसी बनै तुम संगे ॥ आपि न देहु त लेवउ मंगे ॥ रहाऊ ॥ दुई सेर मांगउ चूना
॥ पाउ घीउ संगि लूना ॥ अध सेरू मांगउ दाले ॥ मो कउ दोनउ वखत जिवाले ॥२॥ खाट मांगउ
चउपाइ ॥ सिरहाना अवर तुलाई ॥ ऊपर कउ मांगउ खींधा ॥ तेरी भगति करै जनु थींधा ॥३॥ मै
नाही कीता लबो ॥ इक नाउ तेरा मै फबो ॥ कहि कबीर मनु मानिआ ॥ मनु मानिआ तउ हरि जानिआ
॥४॥ ११ ॥
2.
[Page 1195]
माता झूठी पिता भी जूठा जूठे ही फल लागे ॥
आवहि जूठे जाहि भी जूठे जूठे मरहि अभागे ॥१॥ कहु पंडित सूचा कवनु ठाउ ॥ जहां बैसि हउ भोजनू
खाउ ॥१॥ रहाउ ॥ जिहबा जूठी बोलत जूठा करन नेत्र सभि जूठे ॥ इंद्री की जूठि उतरसि नाही
ब्रह्म अगनि के लूठे ॥२॥ अगनि भी जूठी पानी जूठा जूठी बैसि पकाइआ ॥ जूठी करछी परोसन
लागा जूठे ही बैठि खाइआ ॥३॥ गोबरू जूठा चउका जूठा जूठी दीनी कारा ॥ कहि कबीर तेई नर
सूचे साची परी बिचारा ॥४॥२॥७॥
3.
[Page 1196]
सुरह की जैसी तेरी चाल ॥ तेरी पूंछट ऊपरि झमक बाल ॥१॥ इस घर महि है सु तु ढूंढि खाहि ॥
अउर किस ही के तू मति ही जाहि ॥१॥ रहाउ ॥ चाकी चाटहि चुनू खाहि ॥ चाकी का चीथरा कहां
लै जाहि ॥२॥ छीके पर तेरी बहुतु डीठि ॥ मतु लकरी सोटा तेरी परै पीठि ॥३॥ कहि कबीर
भोग भले कीन ॥ मति कोऊ मारै ईंट ढेम ॥४॥१॥
4.
[Page 1366]
कबीर गरबु न कीजीऐ चाम लपेटे हाड ॥ हैवर
ऊपरि छत्र तर ते फुनि धरनी गाड ॥