Kabir

About this text

Introductory notes

Kabir(1398-1448) is a North Indian devotional poet, who was born in Banaras and was active in the fifteenth century. His corpus of work has a complex textual history with innumerable manuscripts and variants of poems and aphorisms. According to Vinay Dharwadker, thereare three different schools of manuscript-traditions pertainingto Kabir's work, the Nanak Panth (northern), Dadu Panthi(western)and the Kabir Panth. His work survives in various languages-Braj Bhasha, Avadhi, Bhojpuri, Rajasthani, Khadi Boli, Punjabi besides showing traces of Sanskrit, Persian and Arabic elements.

Our selection here is from Pandit Hazariprasad Dvivedi's monograph on Kabir titled "Kabir,unka sahitya aur unke darshanik vicharon ki aalochna".

Primary Reading Pt.Hazariprasad Dvivedi, Kabir: unka sahitya aur unke darshanik vicharon ki aalochna, (Bombay: Hindi Granth Ratnakar Karyalaya, 1942)

कबीर

[कबीर, उनका साहित्य और उनके
दार्शनिक विचारोंकी आलोचना ]

प्रकाशक
हिन्दी-ग्रन्थ-रत्नाकर कार्यालय
,बम्बई:

1.

[Page 252]

५८

पीले प्याला हो मतवाला
प्याला नाम अमीरसका रे ।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो
नख-सिख पूर रहा विषका रे । (१-६३)

2.

[Page 255]

६६

मन रा रँगाये रँगाये जोगी कपड़ा ।
आसन मारि मंदिरमें बैठे
ब्रह्म-छाड़ी पूजन लागे पथरा ॥
कनवा फड़ाय जोगी जटवा बढ़ौले ,
दाढ़ी बढ़ाय जोगी होइ गैले बकरा ।
जंगल जाय जोगी धुनिया रमौले
काम जराय जोगी होय गैले हिजरा ॥
मथवा मुँड़ाय जोगी कपड़ा रंगौले ,
गीता बाँचके होय गैले लबरा ।
कहहि कबीर सुनो भाई साधो,
जम दरवजवा बाँधन जैवे पकड़ा ॥ (१-२०)

3.

[Page 266]

८७

गगनघटा घहरानी साधो , गगनघटा घहरानी ।
पूरब दिससे उठी है बदरिया, रिमझिम बरसत पानी ।
आपन आपन मेंड सम्हारो, बह्यौ जात यह पानी ।
सुरत निरतका बेल नहायत , करै खेत निर्वानी ।
घान काट मार घर आवै , सोई कुसल किसानी ।
दोनों थार बराबर परसै , जे वैं मुनि और ज्ञानी ॥

4.

[Page 281]

१२६

राम तेरी माया दुंद मचावै
गति-मति वाकी समझि परै नहिं , सुर-नर मुनिहिं नचावै ॥
का सेमरके साखा बढ़ये , फूल अनूपम बानीं ।
केतिक चातक लागि रहे हैं , चाखत रुवा उड़ानी ॥
कहा खजूर बड़ाई तेरी , कल कोई नहीं पावै ।
ग्रीखम ऋतु अब आइ तुलानी, छाया काम न आवै ॥
[Page 282]
अपना चतुर और को सिखबै, कामिनि-कनक सयानी ।
कहै कबीर सुनो हो सन्तो, राम चरण रति मानी ॥
[Page 282]

१२९

बागड़ देस लूवनका घर है, तहँ जिनी जाइ दाझनका दर है ॥
सब जग देखौ कोई न धीरा । परत घूरी सिर कहत अबीरा ॥
[Page 283]
न तहाँ सरवर न तहाँ पाणिं । न तहाँ सतगुरू साधु-वाणी ॥
न तहाँ कोकिल न तहाँ सूवा । ऊँचे चढ़ि चढ़ि हंसा मूवा ॥
देस मालवा गहर गँभीर । डग डग रोटी पग पग नीर ॥
कहै कबीर धरती मन मांनां । गूंगोका गुड़ गूंगै का जाणा ॥

4.1.

[Page 283]

१३०

रहना नहिं देस बिराना है ।
यह संसार कागदकी पुड़िया, बूंद पड़े धूल जाना है ।
यह संसार काँटकी बाड़ी, उलझ पुलझ मरि जाना है ।
यह संसार झाड़ औ झाँखर, आग लगे बरि जाना है ।
कहत कबीर सुनी भाई साधो, सतगुरु नाम ठिकाना है ।

5.

[Page 292]

१५३

पंडित बाद बदन्ते झूठा ।
राम कह्यां दुनियां गति पानै,
खाँड कह्या मुख मीठा ॥
पावक कहयाँ पाव जे दाझे,
जल कहि त्रिषा बुझाई ।
भोजन कहयाँ भूख जे भाजै,
तो सब कोइ तिरी जाई ॥
[Page 293]
नरकै साथि सूवा हरि बोलै,
हरि परताप न जावै ।
जो कबहूँ उड़ि जाइ जँगलमें,
बहुरि न सुरतैं आनै ॥
साँची प्रीति बिषै मायासूँ ,
हरि भगवान सूँ दासी ।
कहै कबीर प्रेम नहिं उपज्यौ ,
बांध्यौ जमपुरि जासी ॥

6.

[Page 299]
साधो,देखो जग बौराना ।
साँची कहौ तौं मारन घावै झूठे जंग पतियाना ।
हिन्दू कहत है राम हमारा मुसलमान रहमाना ।
आपसमें दोउ लड़े मरतु हैं मरम कोइ नहिं जाना ।
बहुत मिले मोहिं नेमी-धर्मी प्रात करै असनाना ।
आतम मारि डिंभ धरि बैठे मनमें बहुत गुमान ।
पीतर पाथर पूजन लागे तीरथ बर्न भुलाना ।
माला पहिरे टोपी पहिरे छाप-तिलक अनुमाना ।
साखी सब्दै गावन भूले आतम खबर न जाना ।
घर घर मंत्र जो देन फिरत हैं मायाके अभिमाना ।
गुरुवा सहित सिष्य सब बूड़े अंतकाल पछिताना ।
बहुतक देखे पीर औलिया पढैं किताब कुराना ।
करैं मुरीद कबर बतलावैँ उनहूँ खुदा न जाना ।
हिन्दुकी दया मेहर तुरकनकी दोनों घरसे भागी ।
वो करै जिबह वाँ झटका मारे आग दोऊ घर लागी ।
[Page 300]
या बिधि हँसत चलत हैं हमको आप कहावैं स्याना ।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, इनमें कौन दिवाना ॥

7.

[Page 328]
अरे इन दूहुन राह न पाई ।
हिंदू अपनी करै बड़ाई गागर छुवन न देई ।
बेस्याके पायन-नर सोवै यह देखो हिंदुआई ।
[Page 329]
मुसलमानके पीर औलिया मुर्गी-मुर्गा खाई ।
खाला केरी बेटी ब्याहै घरहिमें करै सगाई ।
बाहरसे इक मुर्दा लाये धोय-धोय चढ़वाई ।
सब सखियाँ मिलि जेंवन बैठी घर-भर करै बड़ाई ।
हिंदुनकी हिंदुवाई देखी तुरकनकी तुरकाई ।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो कौन राह है जाई ॥

8.

[Page 330]

२५०

संतो, राह दुनो हम दीठ ।
हिंदु-तुरुक हटा नहिं मानैँ, स्वाद सबन्हिको मीठा ॥
हिन्दु बरत-एकावसि साधैं, दूध सिंघारा सेती ।
अनकी त्यागैं मनको न हटकैं, पारन करे सगोती ॥
तुरुक रोजा-नीमाज गुजारैं, बिसमिल बाँग पुकारैं ।
इनकी भिश्त कहाँते होइहै , साँझै मुरगी मारें ॥
हिन्दुकी दया मेहर तुरुकनकी, दोनौं घटसों त्यागी ।
वे हलाल वे झटके मोर, आगि दुना घर लागी ॥
हिन्दु तुरुककी एक राह ह, सतगुरु इहै बताई ।
कहँहि कबीर सुनहु हो सेंतो, राम न कहेउ खुदाई ॥
This is a selection from the original text

Keywords

जोगी, जोगी, प्याला, मुर्गा, रोटी, रोटी, रोटी

Source text

Title: Kabir

Subtitle: Kabir, unka sahitya aur unke darshanik vicharon ki aalochna

Author: Pandit Hazariprasad Dvivedi

Publisher: Hindi Granth Ratnakar Karyalaya

Publication date: 1942

Original compiled c.1398-1448

Edition: 1st Edition

Place of publication: Bombay

Provenance/location: Original compiled c.1398-1448

Digital edition

Original author(s): Pandit Hazariprasad Dvivedi

Language: Braj bhasha

Selection used:

  • 1 ) page 252
  • 2 ) page 255
  • 3 ) page 266
  • 4 ) pages 281 to 282
  • 5 ) pages 282 to 283
  • 6 ) pages 283
  • 7 ) pages 292 to 293
  • 8 ) pages 299 to 300
  • 9 ) pages 328 to 329
  • 10 ) pages 330

Responsibility:

Texts collected by: Ayesha Mukherjee, Amlan Das Gupta, Azarmi Dukht Safavi

Texts transcribed by: Muhammad Irshad Alam, Bonisha Bhattacharya, Arshdeep Singh Brar, Muhammad Ehteshamuddin, Kahkashan Khalil, Sarbajit Mitra

Texts encoded by: Bonisha Bhattacharya, Shreya Bose, Lucy Corley, Kinshuk Das, Bedbyas Datta, Arshdeep Singh Brar, Sarbajit Mitra, Josh Monk, Reesoom Pal

Encoding checking by: Hannah Petrie, Gary Stringer, Charlotte Tupman

Genre: India > poetry

For more information about the project, contact Dr Ayesha Mukherjee at the University of Exeter.

Acknowledgements