Bawa Jito
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1. कथा बावे जितौ दी
ओं स्वस्ति श्री गणेशाय नमो विघ्न-विनाशिने ।
गजवक्त्रैकदन्ता विद्या बुद्धि प्रकाशिने ॥ १ ॥
यावत्सुर्य शशि शशेस सरिताधीशो धरा धारिणा,
यावन्नीर समीर बहि नभ आनंतास्त्वधीशो गिरां ।
नावत श्री रघुवंश राज-तिलक कीर्तिश्च ते भूतले,
श्री काली परमेश्वरीच त्रिकुटा संवर्ध यतवाशिवः ॥२॥
दोहरा : सप्तदीप नव खंड में , भारत खंड अनूप ।
ता नहीं पूर जंवू लसे, सभ देसन को भूप ॥
जो सूरज के वंश में , जंवू-पत जमुआल ।
सात भूप वर्णन करों, भाषा वचन रसाल ॥
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कवित्त
हरिदेव जंवू पत गजेसिंह आगे सुत,
आगे ध्रुव देव ताको सूरत सिंह साज है ।
आगे श्री जरा उर सिंह श्री किशोर सिंह ,
ताको आगे गुलाब सिंह पदवी महाराज है ।
अब श्री रणबीर सिंह गुलाबसिंह जू की अंश,
युग युग लौ करे राज जाहू सो काज है ।
धन्य श्री किशोरसिंह श्री गुलाबसिंह धन्य धन्य,
श्री रणबीर सिंह हिन्दू पत लाज है ।
सारे राज बारे संग साज कै समाज खड़े,
बाजत घन बाजे बीच बाजत नगारे है ।
आगे है बहार मौज वर्तत जो राजनीत,
धारे प्रीत वस्त्र शस्त्र भूषण सह्यारे है ।
होत है हुलास जो विलास देख राग रंग,
बैठे सुख संग मौज देखत अपारे है ।
कहै कवी नील कंठ श्री रणबीरसिंह,
टेढ़ी मूछ बारे पै करोर राज बारे है ॥
सवैया
सुन्दर चारु बिचार धरे मन मीतन अति प्रीत दिखामें,
जा महि बुद्धि पराक्रम तेज सु शत्रुन की करछार उड़ामें ।
मानत वेद पुरानन भेद सुदेव सिआवर से गुन जामें ,
कठ कहे कुल भूषण जो अब सो रणवीर हरी मन भामें ॥
दोहरा
जो जैसा पुरुष को, वाने कष्ट जव आय ।
कष्ट दूर से करत है, नीत जाहि मन भाय ॥
जब तक मेरू चन्द्रमा, सागर सूर्य समाज ।
तब तक राज बना रहे, चिरंजीव महाराज ॥
इति मंगला चरणं
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अब आगे श्री बावा जित्तो जी कथा कहते हैं
संवत १४८७ चौदां सै सतासी वीच जंवू पति श्री राजा मालदेव जी का पुत्र राजा हंवीर देव नाम कर्के विख्यात भया जो दिल्ली- पति मुवारख पातसाह के आगे वारां अमराओ बीच मुख्य श्री राजा हंबीरदेव जी थे ।
दोहरा
वहु रण जीते शत्रु जिन, किए ममारख काम ।
किए पराक्रम भीम वत, ताहि भीम दे नाम ॥